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कलयुग की शुरुवात

कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है,
सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढोंगियों के दरबारो में, मजारों पे भीड़ उमड़ी पड़ी है।
दया की बात करो ही मत सड़क पर चलते किसीका एक्सीडेंट हो जाए तो रील बनाकर डालेंगे पर मदद नहीं करेंगे...,
बचा दान...दान तो सब पुण्य कमाने के लालच में करते है अगर पुण्य ना मिले तो कोई दान भी नहीं करेगा...वरना सोचो जो इंसान कुत्ते बिल्ली गाय मछली सभी प्राणियों को खा सकता है वो केवल ग्रह दशा सुधारने के लिए कुत्ते बिल्ली और मछली को आटे की गोलियां बनाके खिलाता है.....ये तो डर और लालच है दान नहीं।
कलयुग शुरू होके तो सदिया बीत गई है बस मन को सांत्वना दी जाती है कि कलयुग आने वाला है।
कोई अपने मन में झांकने के लिए तैयार नहीं...क्यों की सबको लगता है मैं ही दुखी हूं, सबने मेरा फायदा उठाया, मैं ही पीड़ित हूं, हर कोई दूसरों को दोष दे रहा है, पर ये कोई नहीं सोचता कि जो कुछ हो रहा है वो सब उसके ही भूतकाल में लिए निर्णयों का परिणाम है
सब खुदको सही साबित करने में लगे है...
कल्कि आ नहीं रहा, कल्कि आ चुका है...सब एक घोड़े पर बैठे भगवान जैसी आकृति की प्रतिक्षा कर रहे है जो बड़ी सी तलवार लेके घुमाएगा...
कृष्ण ने कभी अधर्मी यादवों को नहीं मारा क्यों कि उसे पता था ये आपस में ही लड़के मर जाएंगे बचे खुचे अधर्मी प्रकृति के विपदा में साफ होंगे। जो धर्म से चलेंगे वो भी मारे जाएंगे जिनको पुनः जन्म प्राप्त होगा इस सृष्टि के विनाश के पश्चात एक नए पृथ्वी पर एक नए सतयुग में! 
इसलिए किसीको सुधारने की कोशिश करने से अच्छा स्वयं धर्म की राह - सत्य, तप, दया, दान पर चलने की शुरुवात करो...

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कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है, सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढ...