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जमदग्नि उवाच - भाग एक

जीवन का सबसे बड़ा युद्ध किसी दुश्मन से नहीं, अपने ही भीतर के दानवों से होता है। जो इस बात को नहीं समझता, वह जन्म-जन्मांतर तक हारता रहेगा। हर इंसान के भीतर एक अर्जुन है जो भागना चाहता है, और एक कृष्ण है जो कहता है  “लड़ जा और फाड़ दे” जो सुख चाहता है, वो पहले ही गिर चुका है। सुख, मोह, प्रेम, स्वाद, नाम, आस and all ये बस जंजीरें हैं जो आत्मा को बांध देती हैं। दुनिया कहती है प्रेम में जीवन है, पर सच्चाई ये है कि प्रेम में बंधन है। विरक्ति ही असली स्वतंत्रता है। जो कुछ भी जैसा है, उसे वैसा ही रहने दो। दुनिया को बदलने की बीमारी छोड़ देना ही होशियारी है, खुद को बदलना पड़ता है। बाहर कुछ गलत नहीं, गड़बड़ तेरे भीतर है। जो हर बात पर दुखी होता है, उसे समझना चाहिए कि वह भावनाओं का गुलाम है। साधक वही है जो अपने मन को आदेश दे, ना कि मन से आदेश ले।

अहंकार हर युद्ध की जड़ है। जब तक “मैं” बड़ा हूँ, तब तक दुनिया का हर सच छोटा है। अर्जुन तब तक कुछ नहीं समझ पाया जब तक उसने खुदकों नहीं झुकाया, जब तक उसने “मैं” नहीं छोड़ा। और वही क्षण आत्मा के जागरण का होता है जब इंसान कहता है “जो होना है, अब बस हो जाए।” जब तू वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार लेता है, तब तू ईश्वर के साथ बहना शुरू करता है, लड़ना बंद कर देता है। ईर्ष्या, शिकायत, पछतावा ये सब उस इंसानी कीड़े के लक्षण हैं जिसने खुद को नहीं जाना। जो सच्चा साधक है, वो किसी से कोई compare नहीं करता। जिसने खुद को जान लिया, उसे किसी से जलन नहीं हो सकती। वह जानता है कि हर आत्मा का मार्ग अलग है। जो दूसरों के सुख पर कुंठित है, वह खुद के दुख का निर्माता है।

मृत्यु को देखकर भागने वाले असंख्य हैं, पर उसे देखकर मुस्कुराने वाले बोहोत कम हैं। जो मरने से डरता है, वह जीने के लायक नहीं। भीष्म के जैसा मरने की कला सिखनी है जब चाहो, जब ठानो, तब प्राण छोड़ दो, क्योंकि तब मृत्यु अपने अधीन हो जाती है। मृत्यु तब तक डराती है जब तक तू खुद को शरीर समझता है। जिस दिन तू समझ गया कि तू बॉडी नहीं, चेतना है, उस दिन मृत्यु भी तुझे प्रणाम करती है। पैसा, इज्जत, सुरक्षा ये सब धोखे हैं। जितना तू भविष्य के लिए जोड़ता है, उतना तू वर्तमान से कटता जाता है। जो साधक अपने कल के भय में जीता है, वह आज की ज़िंदगी खो देता है। जीवन का एक ही मंत्र है जो चाहिए नहीं, उसे छोड़ देना है। हर वस्तु, हर संबंध, हर आदत जो तुझे बोझ लगती है, उसे काट फेंक। मुक्त होना सजावट से नहीं, त्याग से होता है।

देवताओं का सम्मान कर, पर उनसे भीख मत माँग। ईश्वर भिखारियों का साथी नहीं, योद्धाओं का साक्षी है। जो कर्म नहीं करता, जो सिर्फ प्रार्थना में डूबा रहता है, वह खुदकों को धोखा दे रहा है। ईश्वर तुझे नहीं चलाएगा, तू खुद उठेगा तो ईश्वर तेरे पीछे खड़ा होगा। यही साक्षीभाव है। प्रेम, वासना, और भावना ये तीन रस सबसे मीठे ज़हर हैं। जो इनसे ऊपर उठ गया, वही योगी है। जो प्रेम को अधिकार समझता है, वह पथभ्रष्ट है। जो वासना को प्रेम समझता है, वह पशु है। जो इन सबको देखता है पर बंधता नहीं, वही ईश्वर का दूत है। स्थान का कोई अर्थ नहीं, स्थिति का अर्थ है। चाहे तू राजमहल में बैठा हो या गुफा में, अगर मन स्थिर है, तो वही तीर्थ है। अगर मन अस्थिर है, तो स्वर्ग भी नरक बन जाता है। साधना का कोई भूगोल नहीं, केवल मन का संतुलन है।

सम्मान को हमेशा देह से ऊपर रखो। शरीर मिट्टी है, पर गरिमा अमर है। जिसने अपने सत्य से समझौता किया, वह चाहे जितना जिए, मरा हुआ है। जो अपने पथ से नहीं डिगा, वही जीवित है। जीवन का मूल्य सांसों से नहीं, संकल्प से मापा जाता है। धर्म का अर्थ पूजा नहीं, अपने मार्ग पर अडिग रहना है। अर्जुन ने युद्ध किया, राम ने वनवास जिया, कृष्ण रण में मुस्कुराया तीनों का सत्य एक ही था: जो अपने धर्म से नहीं हटा, वही मुक्त हुआ। यही योग है, यही ध्यान है, यही ब्रह्म है।

दुनिया तुझे हर क्षण गिराने की कोशिश करेगी। लोग कहेंगे भावनात्मक बन, प्रेम कर, संवेदनशील बन पर सच्चाई यह है कि जितना तू संवेदनशील होगा, उतना कमजोर होगा। अध्यात्म का मार्ग लोहे जैसा कठोर है। यहाँ करुणा नहीं, यहाँ स्पष्टता चाहिए। यहाँ भावना नहीं, यहाँ साक्षी चाहिए। विरक्ति का अर्थ भागना नहीं है, समझना है। जब तू देख लेता है कि हर चीज़ अस्थायी है, तो मोह अपने आप गिर जाता है। जो संसार को गंभीरता से लेता है, उसने अभी कुछ नहीं समझा। जीवन खेल है, पर जो इसे असली समझता है, वही हारता है। हर दिन अपने भीतर के युद्ध को देख कब मन डरता है, कब ईर्ष्या करता है, कब बहकता है। वही तेरा कुरुक्षेत्र है। वहाँ कृष्ण भी तू ही है, अर्जुन भी तू ही है। जब तू खुद अपने भीतर के युद्ध में विजयी होगा, तभी बाहर की दुनिया झुक जाएगी।

साधक वही है जो अकेला चलता है, न प्रशंसा की चाह में, न संग की लालसा में। एकांत में जो अडिग है, वही आदिशिव से जुड़ा है। जो भीड़ में मजबूत दिखता है, वह भीतर से टूटा हुआ है। अकेला होना एक तप है। मौन रहना एक युद्ध है। विरक्ति एक विजय है। जीवन का रहस्य यही है कुछ मत पकड़, कुछ मत मांग, किसीसे मत डर कोई माई का लाल नहीं जो तेरा बाल भी बांका कर सके। बस देखते रह, ज्वालामुखी जैसा जलते रह और आगे बढ़ते रह। और जब मौत सामने आए, तो उसी शांति से देखो जैसे उगते सूरज को देख रहा है। क्योंकि जिसने जीवन को साक्षीभाव से देखा, उसके लिए मृत्यु भी बस एक और परिवर्तन है।

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कलयुग की शुरुवात

कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है, सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढ...