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तांत्रिक की शक्तिया

तांत्रिक के पास शक्ति नहीं होती, वह स्वयं शक्ति का रूप होता है। उसके पास जो दिखता है, वह भ्रम है। लोग सोचते हैं कि तांत्रिक उड़ सकता है, दीवार पार कर सकता है, तत्वों को नियंत्रित कर सकता है पर ये सब केवल बाहरी खेल हैं। असली तंत्र वहां से शुरू होता है जहां तुम्हारा भय खत्म होता है। तांत्रिक अपने मन को मार चुका होता है, इसलिए संसार की कोई ताकत उस पर शासन नहीं कर सकती। उसकी चेतना तत्वों के भीतर प्रवेश कर चुकी होती है, इसलिए हवा, अग्नि, जल, मिट्टी, आकाश सब उसके आदेश को पहचानते हैं।

वह मंत्र से नहीं, संकल्प से कार्य करता है। उसकी दृष्टि में जप, तिलक, यंत्र, रूद्राक्ष, अग्नि सब उपकरण हैं, साधन नहीं। वह साधन का दास नहीं होता, वह साधना का स्वामी होता है। जो साधना को पकड़कर बैठा है, वह अभी बच्चा है, जिसने साधना को भस्म कर दिया वही तांत्रिक है।

तांत्रिक किसी को चमत्कार नहीं दिखाता, क्योंकि वह जानता है कि चमत्कार दिखाने वाला शक्ति खो देता है। उसकी ऊर्जा एक तलवार की तरह धारदार होती है, पर वह उसे म्यान में रखता है। जो हर बात पर शक्ति दिखाना चाहता है, वह व्यापारी है, साधक नहीं। असली तांत्रिक मौन रहता है, क्योंकि उसकी हर सांस मंत्र होती है। वह न किसी से डरता है, न किसी को डराता है, वह केवल साक्षी है आदिशिवोहम का।

उसके पास देखने की शक्ति भी है और मिटा देने की भी। वह समय को मोड़ सकता है, लेकिन समय को छूता नहीं। वह मृत्यु को रोक सकता है, लेकिन मृत्यु से भागता नहीं। वह जानता है कि शक्ति किसी को दी नहीं जाती, छिनी नहीं जाती, शक्ति केवल एक अवस्था है जब आत्मा खुद को ईश्वर स्वीकार कर लेती है।

जो खुद को तांत्रिक कहता है, वह नहीं है। जो खुद को कुछ नहीं मानता, वही असली तांत्रिक है। उसका अस्तित्व तलवार की धार पर नाचता है, और वह नाच ही उसका तंत्र है। जो उस नाच को देख लेता है, वही जानता है कि आदिशीव न तो शांति है न हिंसा, आदिशिव केवल जागरण है और तांत्रिक उस जागरण का प्रहरी है।

शक्ति उसके हाथ में नहीं, उसकी दृष्टि में होती है। और उसकी दृष्टि में झाँकना किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं, क्योंकि वह देखता नहीं, वह आर-पार भेद देता है। तांत्रिक वो नहीं जो देवता बुला ले, तांत्रिक वो है जो खुद देवत्व में विलीन हो जाए। बाकी सब जादू है, तमाशा है, और अज्ञान का व्यापार है।

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

तंत्र और तांत्रिक - 2

आखरी शब्द

तंत्र का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग़ में सबसे पहले क्या आता है? काला जादू, वशीकरण, भूत–प्रेत, श्मशान की साधना, पिशाचिनी और यक्षिणी की पूजा। यही चित्र समाज में गढ़ दिया गया है। क्यों? ताकि लोग तंत्र से डरते रहें। ताकि वे इसके असली अर्थ तक पहुँच ही न पाएँ। ढोंगी, पाखंडी और अंधविश्वास के ठेकेदारों ने तंत्र को इतना गंदा और डरावना रूप दिखाया कि साधारण इंसान उसे सुनकर ही घबरा जाए। लेकिन सच यह है कि तंत्र का इन सब से कोई लेनादेना नहीं है। तंत्र का मतलब काला जादू नहीं, तंत्र का मतलब है चेतना का विज्ञान।

जो लोग तंत्र को भूतप्रेत सिद्ध करने या किसी को वशीकरण में बाँधने का साधन मानते हैं, वे न सिर्फ़ मूर्ख हैं बल्कि तंत्र के अपमान के अपराधी भी हैं। तंत्र इंसान को भिखारी नहीं बनाता, जो भगवान के सामने बैठकर रोता रहे “हे भगवान, मुझे ये दे, मुझे वो दे।” तंत्र ऐसे कमजोर लोगों के लिए नहीं है। तंत्र योद्धा चाहता है। ऐसा योद्धा जो अपने डर से लड़ सके, अपनी इच्छाओं पर विजय पा सके और अपनी चेतना को विस्तार दे सके।

तंत्र इंसान को शेर बनाता है। और यह मत भूलो कि बली हमेशा बकरे की दी जाती है, शेर की नहीं। तंत्र का साधक वह नहीं होता जो डरकर देवी–देवताओं के आगे सौदेबाज़ी करे। तंत्र का साधक वह होता है जो अपने भीतर की सबसे अंधेरी खाई में उतरने की हिम्मत रखता हो। वहाँ जहाँ कोई दूसरा जाने की सोच भी न सके। तंत्र वही है जो इंसान को अपने ही भ्रम, अपनी ही वासनाओं, अपने ही अंधकार से भिड़ा दे। और जब इंसान उस युद्ध में जीत जाता है तो वह साधारण नहीं रहता, वह असाधारण हो जाता है।

तंत्र का मार्ग अनुभव का मार्ग है, विश्वास का नहीं। बाकी सभी धर्म, सभी मज़हब, सभी पाखंडी गुरुओं का खेल तुम्हें आस्था के जाल में बाँधता है। वे कहते हैं “विश्वास करो, आँख मूँदकर मान लो।” लेकिन तंत्र कहता है “अनुभव करो।” क्योंकि अनुभव में झूठ नहीं टिक सकता। यही कारण है कि तंत्र हमेशा से समाज के लिए खतरा रहा। धर्म के ठेकेदारों ने इसे बदनाम किया क्योंकि उन्हें पता था कि अगर इंसान तंत्र को समझ गया, तो वह उनके जाल से मुक्त हो जाएगा। और एक मुक्त इंसान सबसे खतरनाक होता है, क्योंकि वह किसी का गुलाम नहीं रहता।

आज का इंसान धर्म को व्यापार बना चुका है। मंदिर दान और हवन की आहुति के पीछे सौदे करता है। साधुसंतों का वेश पहनकर पाखंडी लोग जनता को डराते हैं, शाप–वरदान का नाटक करके भीड़ को गुलाम बनाते हैं। लेकिन तंत्र इस नाटक को नकार देता है। तंत्र कहता है कि सत्य को किसी ग्रंथ, किसी मूर्ति, किसी नियम या किसी ठेकेदार में मत ढूँढो। सत्य तुम्हारे भीतर है, और उसे जगाने का तरीका है—तंत्र।

श्मशान को तंत्र का केंद्र बताया गया ताकि लोग और भी डरें। लेकिन असलियत यह है कि श्मशान से बड़ा कोई गुरु नहीं, क्योंकि वह सिखाता है कि यह शरीर नश्वर है। लेकिन ढोंगी बाबाओं ने श्मशान साधना का मतलब ही बदल डाला। उन्होंने इसे अंधविश्वास और डर का तमाशा बना दिया। असली तंत्र साधना न तो किसी को डराने के लिए होती है, न किसी को बाँधने के लिए। यह तो साधक के अपने भीतर मृत्यु के भय को समाप्त करने के लिए होती है। और जो मृत्यु के भय से मुक्त हो गया, उसके लिए फिर कोई डर नहीं बचता।

तंत्र तुम्हें वह ताक़त देता है जो किताबें नहीं दे सकतीं, जो मंदिर की घंटियाँ नहीं दे सकतीं, जो गुरुओं के प्रवचन नहीं दे सकते। क्योंकि तंत्र सत्य का सीधा सामना कराता है। इसमें कोई पर्दा नहीं, कोई अभिनय नहीं। यह नग्न है, कच्चा है, खतरनाक है। लेकिन जो इसे झेल ले, उसके लिए फिर असंभव कुछ नहीं।

समाज ने तंत्र को गाली दी, क्योंकि समाज को डरपोक इंसान चाहिए। ऐसा इंसान जो सवाल न करे, जो चुपचाप नियमों का पालन करे, जो भीड़ में खोकर जीता रहे। लेकिन तंत्र ऐसा इंसान नहीं चाहता। तंत्र उस इंसान को जन्म देता है जो सवाल करे, जो विद्रोह करे, जो नियम तोड़े और सत्य को अपने अनुभव से जीए। यही कारण है कि तंत्र साधक भीड़ से अलग दिखता है। वह अकेला होता है, लेकिन शक्तिशाली होता है। वह मौन होता है, लेकिन उसकी मौन उपस्थिति भी कंपकंपी पैदा करती है।

तंत्र कोई डरावना खेल नहीं, तंत्र कोई वासना का साधन नहीं। यह तो आत्मा को मुक्त करने का विज्ञान है। जिसे सिर्फ़ वही समझ सकता है जो शेर बनने की हिम्मत रखता हो। बाकी सब डरते रहेंगे, भ्रम में जीते रहेंगे। याद रखो तंत्र की आग से वही गुजरता है जो जलने की हिम्मत रखता है। बाकी तो हमेशा राख को ही भगवान मानते रहेंगे।

- शिवांश जमदग्नि

तंत्र और तांत्रिक - 1

डरना मना है 😰

कुछ लोग सोच रहे होंगे टॉपिक आज ऐसा क्यों है? पर शायद इस लेख की जरूरत है इसलिए आज इस विषय पर संक्षिप्त मे लिख रहा हु!( लेख लिखने के बाद देखा की मेरा संक्षिप्त इतना बड़ा है🧐) 

कुछ लोग तांत्रिकों से डरते है, कहते है फलाना तांत्रिक है उसने हमपे ये कर दिया वो कर दिया। तांत्रिक बुरे होते है काला जादू करते है। उनके पास जिन है, छेड़ा है, कोई किसी देवी का बोहोत बड़ा भगत है, किसी पीर का भगत है, उसमे कोई सवारी है, नवनाथों की शाबरी विद्या का सिद्ध है फलाना फलाना... और सबसे बड़ी बात वो 'तांत्रिक' है! - अजी घंटा

आजतक लोगों का पाला कभी किसी सच्चे तांत्रिक से नहीं पडा है इसलिए ऐसे दो कौड़ी के षट्कर्म के मंत्रों को रटने वालों को, सवारी आने वालों को, काला जादू करने वालों को ही तांत्रिक समझकर डरने लगते है। 

आजकल हर कोई झाडफुक करने, सवारी आने वाला खुदकों तांत्रिक बताकर घूमने लगा है। जिसमे 99% पाखंडी है। 

तंत्र शास्त्र की गहराई सबके बस के बात नहीं होती, garage मे काम करने वाला मेकेनिक एंजिनीयर नहीं होता। छोटे मोठे नुस्खे बताने वाला डॉक्टर नहीं होता। उसी प्रकार झाडफूँक, लोकदेवता, भूत-प्रेत-आत्मा भगाने वाला ओझा हो, किसी देवी देवता की सवारी आने वाला भगत, धार्मिक कार्य जैसे ग्रह शांति, वास्तु शांति कराने वाला पंडित हो, या कुंडली मिलान कराने वाला ज्योतिषी हो या वशीकरण करने वाला बंगाली बाबा हो ऐसे व्यक्ति तांत्रिक नहीं हो सकते। तांत्रिक बनना केवल लाल काले कपड़े पहनकर झाड़फुक करना नहीं होता, मानव खोपड़ी लेके घूमने वाला या नशे मे घूमने वाले लोग तांत्रिक कदापि नहीं हो सकते। तांत्रिक ये अध्यात्म (spirituality) का अत्याधिक सन्मानजनक पद है। 

जैसे एक इंजीनियर चाहे तो garage मे मैकेनिक का काम कर सकता है, डॉक्टर चाहे तो चलते फिरते छोटे मोटे रोगों की दवा बता सकता है इलाज भी कर सकता है क्यों की उसको उस क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान है। एक तांत्रिक झाड़फुक वाले का कार्य, ज्योतिषी का कार्य, पंडित का कार्य, योग गुरु का कार्य साथ ही आधुनिक technology या साइंस से जुड़ा कार्य बड़ी आसानी से कर सकता है क्यों की इन सभी क्षेत्रों का गूढ ज्ञान उसके पास होता है। परंतु एक garage का मैकेनिक इंजीनियर नहीं बन सकता, वैसे ही झाड़फुक वाला, भूत प्रेत वीर पूजने वाला, देवताओ की सवारी लेने वाला भगत, धार्मिक कार्य करने वाला पंडित, ज्योतिषी या किसी शास्त्र का विशेषज्ञ तांत्रिक नहीं कहलाया जाता।  

कौन होता है तांत्रिक?

तांत्रिक यह पद कोई छोटी बात नहीं। एक तांत्रिक मंत्र, यंत्र, तंत्र, ध्यान, योग, ज्योतिष विज्ञान, मानव शरीर और कुंडलिनी विज्ञान का ज्ञाता तो होता ही है। साथ ही वो आधुनिक विज्ञान जैसे केमिस्ट्री, फिज़िक्स, मनोविज्ञान, विद्या, महाविद्या, पराविद्या, अपरा विद्याओ का ज्ञाता भी होता है। 

एक तांत्रिक कितने विषयों मे पारंगत होता है इसकी अगर मैं छोटीसी सूची भी यहा लिख दु तो लोग कहेंगे एक व्यक्ति इतना सारा ज्ञान कैसे रख सकता है? एक तांत्रिक केवल शारीरिक रूप से नहीं आत्मिक स्तर पर भी अनेक विषयों का अभ्यास करता रहता है उसका अभ्यास आत्मा के स्तर पर भी निरंतर चालू रहता है। 

इस जगत के सबसे बड़े तांत्रिक का नाम देवो के देव महादेव है, ज्यों समय आने पर अघोर रूप भी धर लेते है, विष पीते है पर शरीर पर उसका परिणाम नहीं होने देते, देवो के डॉक्टर बनकर बैद्यनाथ भी बनते है, योगेश्वर बनकर योग का ज्ञान भी देते है, नटराज बनकर कला के देवता भी बनते है, त्रिपुरारी बनकर तीन लोको का निर्माण का ज्ञान त्रिपुरासुर को दे सकते है और उसके बनाए तीन लोको का अंत भी करने मे सक्षम होते है। 

अब पूछता हु जिसके पास इतना सारा ज्ञान है वो झाड़फुक करके चोटी मोटी कमाई करेगा?

भूत प्रेत आत्मा भागकर लोगों के जिंदगी सवारेगा? देवी देवता की सवारी लेके बाल झटककर नाचेगा?

जिसका connection सीधा देवताओ से है वो इंसानों के बीच इंसानों वाली हरकते (मेरी भाषा मे रंडी रोना) करेगा? 

लोगों के भीड़ मे घूम घूम कर या सभा लगाकर हनुमान, राधाजी, महादेव, कृष्ण के रूपों के बारेमे कथावाचन करेगा? (मेरी भाषा मे बोल बच्चन देगा?) 

तांत्रिक को ना अपमान का भय होता है न सन्मान का लालच वो कभी सामने नहीं आता, उसे इंसानों से किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं होती, उसे समाज सुधारने मे कोई रस नहीं होता क्यों की उसे पता है ये इंसानी कीड़े कभी सुधरने वाले नहीं है, कलयुग मे तो वैसे भी कोई चांस नहीं है सब मरने वाले है कुत्ते की मौत चाहे इस जनम मे ना हो अगले जनम मे या उसके अगले। तांत्रिक को किसिका गुरु बनने मे रस नहीं होता पर जब वो किसिको मार्गदर्शन करता है तो उसकी अपेक्षा होती है की वह व्यक्ति पूर्ण समर्पण के साथ बिना किसी संदेह के उसकी बात माने। 

क्यों की शंका को त्यागे बिना कोई शंकर नहीं बन सकता!

अब ये सारी बाते मैं क्यों बता रहा हु? क्या मुझे समाज सुधारने का कार्य करना है? नहीं मुझे केवल इतना पूछना है आजकल सोशल मीडिया पर तंत्र सिखाने वाले बोहोत सारे (स्वयघोषित तांत्रिक) दिख रहे है, क्या वो सच मे तंत्र जानते है? एक तांत्रिक ही तंत्र की योग्य शिक्षा दे सकता है और तंत्र ये आत्मउन्नति सिखाता है, एक अडिग चरित्र बनाता है, ज्ञानी बनाता है अगर तांत्रिक ज्ञानी नहीं होते तो राम ने रावण से वैश्विक ज्ञान लेनेके लिए लक्ष्मण को बोला नहीं होता क्यों की रावण स्वयं एक तांत्रिक था। पूरे विश्व का जिसके पास ज्ञान हो वो होता है तांत्रिक। झाड़फुक, टोने टोटके, भूतप्रेत, वशीकरण जैसी टुच्ची बातों मे तांत्रिक का रस नहीं होता, और ना ही ऐसे चीजों मे रस रखने वालों को वो पास आने देता है और ना सिखाता है। 

क्रमश:

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कलयुग की शुरुवात

कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है, सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढ...