वह मंत्र से नहीं, संकल्प से कार्य करता है। उसकी दृष्टि में जप, तिलक, यंत्र, रूद्राक्ष, अग्नि सब उपकरण हैं, साधन नहीं। वह साधन का दास नहीं होता, वह साधना का स्वामी होता है। जो साधना को पकड़कर बैठा है, वह अभी बच्चा है, जिसने साधना को भस्म कर दिया वही तांत्रिक है।
तांत्रिक किसी को चमत्कार नहीं दिखाता, क्योंकि वह जानता है कि चमत्कार दिखाने वाला शक्ति खो देता है। उसकी ऊर्जा एक तलवार की तरह धारदार होती है, पर वह उसे म्यान में रखता है। जो हर बात पर शक्ति दिखाना चाहता है, वह व्यापारी है, साधक नहीं। असली तांत्रिक मौन रहता है, क्योंकि उसकी हर सांस मंत्र होती है। वह न किसी से डरता है, न किसी को डराता है, वह केवल साक्षी है आदिशिवोहम का।
उसके पास देखने की शक्ति भी है और मिटा देने की भी। वह समय को मोड़ सकता है, लेकिन समय को छूता नहीं। वह मृत्यु को रोक सकता है, लेकिन मृत्यु से भागता नहीं। वह जानता है कि शक्ति किसी को दी नहीं जाती, छिनी नहीं जाती, शक्ति केवल एक अवस्था है जब आत्मा खुद को ईश्वर स्वीकार कर लेती है।
जो खुद को तांत्रिक कहता है, वह नहीं है। जो खुद को कुछ नहीं मानता, वही असली तांत्रिक है। उसका अस्तित्व तलवार की धार पर नाचता है, और वह नाच ही उसका तंत्र है। जो उस नाच को देख लेता है, वही जानता है कि आदिशीव न तो शांति है न हिंसा, आदिशिव केवल जागरण है और तांत्रिक उस जागरण का प्रहरी है।
शक्ति उसके हाथ में नहीं, उसकी दृष्टि में होती है। और उसकी दृष्टि में झाँकना किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं, क्योंकि वह देखता नहीं, वह आर-पार भेद देता है। तांत्रिक वो नहीं जो देवता बुला ले, तांत्रिक वो है जो खुद देवत्व में विलीन हो जाए। बाकी सब जादू है, तमाशा है, और अज्ञान का व्यापार है।
शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

No comments:
Post a Comment