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तंत्र और तांत्रिक - 2

आखरी शब्द

तंत्र का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग़ में सबसे पहले क्या आता है? काला जादू, वशीकरण, भूत–प्रेत, श्मशान की साधना, पिशाचिनी और यक्षिणी की पूजा। यही चित्र समाज में गढ़ दिया गया है। क्यों? ताकि लोग तंत्र से डरते रहें। ताकि वे इसके असली अर्थ तक पहुँच ही न पाएँ। ढोंगी, पाखंडी और अंधविश्वास के ठेकेदारों ने तंत्र को इतना गंदा और डरावना रूप दिखाया कि साधारण इंसान उसे सुनकर ही घबरा जाए। लेकिन सच यह है कि तंत्र का इन सब से कोई लेनादेना नहीं है। तंत्र का मतलब काला जादू नहीं, तंत्र का मतलब है चेतना का विज्ञान।

जो लोग तंत्र को भूतप्रेत सिद्ध करने या किसी को वशीकरण में बाँधने का साधन मानते हैं, वे न सिर्फ़ मूर्ख हैं बल्कि तंत्र के अपमान के अपराधी भी हैं। तंत्र इंसान को भिखारी नहीं बनाता, जो भगवान के सामने बैठकर रोता रहे “हे भगवान, मुझे ये दे, मुझे वो दे।” तंत्र ऐसे कमजोर लोगों के लिए नहीं है। तंत्र योद्धा चाहता है। ऐसा योद्धा जो अपने डर से लड़ सके, अपनी इच्छाओं पर विजय पा सके और अपनी चेतना को विस्तार दे सके।

तंत्र इंसान को शेर बनाता है। और यह मत भूलो कि बली हमेशा बकरे की दी जाती है, शेर की नहीं। तंत्र का साधक वह नहीं होता जो डरकर देवी–देवताओं के आगे सौदेबाज़ी करे। तंत्र का साधक वह होता है जो अपने भीतर की सबसे अंधेरी खाई में उतरने की हिम्मत रखता हो। वहाँ जहाँ कोई दूसरा जाने की सोच भी न सके। तंत्र वही है जो इंसान को अपने ही भ्रम, अपनी ही वासनाओं, अपने ही अंधकार से भिड़ा दे। और जब इंसान उस युद्ध में जीत जाता है तो वह साधारण नहीं रहता, वह असाधारण हो जाता है।

तंत्र का मार्ग अनुभव का मार्ग है, विश्वास का नहीं। बाकी सभी धर्म, सभी मज़हब, सभी पाखंडी गुरुओं का खेल तुम्हें आस्था के जाल में बाँधता है। वे कहते हैं “विश्वास करो, आँख मूँदकर मान लो।” लेकिन तंत्र कहता है “अनुभव करो।” क्योंकि अनुभव में झूठ नहीं टिक सकता। यही कारण है कि तंत्र हमेशा से समाज के लिए खतरा रहा। धर्म के ठेकेदारों ने इसे बदनाम किया क्योंकि उन्हें पता था कि अगर इंसान तंत्र को समझ गया, तो वह उनके जाल से मुक्त हो जाएगा। और एक मुक्त इंसान सबसे खतरनाक होता है, क्योंकि वह किसी का गुलाम नहीं रहता।

आज का इंसान धर्म को व्यापार बना चुका है। मंदिर दान और हवन की आहुति के पीछे सौदे करता है। साधुसंतों का वेश पहनकर पाखंडी लोग जनता को डराते हैं, शाप–वरदान का नाटक करके भीड़ को गुलाम बनाते हैं। लेकिन तंत्र इस नाटक को नकार देता है। तंत्र कहता है कि सत्य को किसी ग्रंथ, किसी मूर्ति, किसी नियम या किसी ठेकेदार में मत ढूँढो। सत्य तुम्हारे भीतर है, और उसे जगाने का तरीका है—तंत्र।

श्मशान को तंत्र का केंद्र बताया गया ताकि लोग और भी डरें। लेकिन असलियत यह है कि श्मशान से बड़ा कोई गुरु नहीं, क्योंकि वह सिखाता है कि यह शरीर नश्वर है। लेकिन ढोंगी बाबाओं ने श्मशान साधना का मतलब ही बदल डाला। उन्होंने इसे अंधविश्वास और डर का तमाशा बना दिया। असली तंत्र साधना न तो किसी को डराने के लिए होती है, न किसी को बाँधने के लिए। यह तो साधक के अपने भीतर मृत्यु के भय को समाप्त करने के लिए होती है। और जो मृत्यु के भय से मुक्त हो गया, उसके लिए फिर कोई डर नहीं बचता।

तंत्र तुम्हें वह ताक़त देता है जो किताबें नहीं दे सकतीं, जो मंदिर की घंटियाँ नहीं दे सकतीं, जो गुरुओं के प्रवचन नहीं दे सकते। क्योंकि तंत्र सत्य का सीधा सामना कराता है। इसमें कोई पर्दा नहीं, कोई अभिनय नहीं। यह नग्न है, कच्चा है, खतरनाक है। लेकिन जो इसे झेल ले, उसके लिए फिर असंभव कुछ नहीं।

समाज ने तंत्र को गाली दी, क्योंकि समाज को डरपोक इंसान चाहिए। ऐसा इंसान जो सवाल न करे, जो चुपचाप नियमों का पालन करे, जो भीड़ में खोकर जीता रहे। लेकिन तंत्र ऐसा इंसान नहीं चाहता। तंत्र उस इंसान को जन्म देता है जो सवाल करे, जो विद्रोह करे, जो नियम तोड़े और सत्य को अपने अनुभव से जीए। यही कारण है कि तंत्र साधक भीड़ से अलग दिखता है। वह अकेला होता है, लेकिन शक्तिशाली होता है। वह मौन होता है, लेकिन उसकी मौन उपस्थिति भी कंपकंपी पैदा करती है।

तंत्र कोई डरावना खेल नहीं, तंत्र कोई वासना का साधन नहीं। यह तो आत्मा को मुक्त करने का विज्ञान है। जिसे सिर्फ़ वही समझ सकता है जो शेर बनने की हिम्मत रखता हो। बाकी सब डरते रहेंगे, भ्रम में जीते रहेंगे। याद रखो तंत्र की आग से वही गुजरता है जो जलने की हिम्मत रखता है। बाकी तो हमेशा राख को ही भगवान मानते रहेंगे।

- शिवांश जमदग्नि

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