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कलयुग की शुरुवात

कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है,
सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढोंगियों के दरबारो में, मजारों पे भीड़ उमड़ी पड़ी है।
दया की बात करो ही मत सड़क पर चलते किसीका एक्सीडेंट हो जाए तो रील बनाकर डालेंगे पर मदद नहीं करेंगे...,
बचा दान...दान तो सब पुण्य कमाने के लालच में करते है अगर पुण्य ना मिले तो कोई दान भी नहीं करेगा...वरना सोचो जो इंसान कुत्ते बिल्ली गाय मछली सभी प्राणियों को खा सकता है वो केवल ग्रह दशा सुधारने के लिए कुत्ते बिल्ली और मछली को आटे की गोलियां बनाके खिलाता है.....ये तो डर और लालच है दान नहीं।
कलयुग शुरू होके तो सदिया बीत गई है बस मन को सांत्वना दी जाती है कि कलयुग आने वाला है।
कोई अपने मन में झांकने के लिए तैयार नहीं...क्यों की सबको लगता है मैं ही दुखी हूं, सबने मेरा फायदा उठाया, मैं ही पीड़ित हूं, हर कोई दूसरों को दोष दे रहा है, पर ये कोई नहीं सोचता कि जो कुछ हो रहा है वो सब उसके ही भूतकाल में लिए निर्णयों का परिणाम है
सब खुदको सही साबित करने में लगे है...
कल्कि आ नहीं रहा, कल्कि आ चुका है...सब एक घोड़े पर बैठे भगवान जैसी आकृति की प्रतिक्षा कर रहे है जो बड़ी सी तलवार लेके घुमाएगा...
कृष्ण ने कभी अधर्मी यादवों को नहीं मारा क्यों कि उसे पता था ये आपस में ही लड़के मर जाएंगे बचे खुचे अधर्मी प्रकृति के विपदा में साफ होंगे। जो धर्म से चलेंगे वो भी मारे जाएंगे जिनको पुनः जन्म प्राप्त होगा इस सृष्टि के विनाश के पश्चात एक नए पृथ्वी पर एक नए सतयुग में! 
इसलिए किसीको सुधारने की कोशिश करने से अच्छा स्वयं धर्म की राह - सत्य, तप, दया, दान पर चलने की शुरुवात करो...

जमदग्नि उवाच - भाग एक

जीवन का सबसे बड़ा युद्ध किसी दुश्मन से नहीं, अपने ही भीतर के दानवों से होता है। जो इस बात को नहीं समझता, वह जन्म-जन्मांतर तक हारता रहेगा। हर इंसान के भीतर एक अर्जुन है जो भागना चाहता है, और एक कृष्ण है जो कहता है  “लड़ जा और फाड़ दे” जो सुख चाहता है, वो पहले ही गिर चुका है। सुख, मोह, प्रेम, स्वाद, नाम, आस and all ये बस जंजीरें हैं जो आत्मा को बांध देती हैं। दुनिया कहती है प्रेम में जीवन है, पर सच्चाई ये है कि प्रेम में बंधन है। विरक्ति ही असली स्वतंत्रता है। जो कुछ भी जैसा है, उसे वैसा ही रहने दो। दुनिया को बदलने की बीमारी छोड़ देना ही होशियारी है, खुद को बदलना पड़ता है। बाहर कुछ गलत नहीं, गड़बड़ तेरे भीतर है। जो हर बात पर दुखी होता है, उसे समझना चाहिए कि वह भावनाओं का गुलाम है। साधक वही है जो अपने मन को आदेश दे, ना कि मन से आदेश ले।

अहंकार हर युद्ध की जड़ है। जब तक “मैं” बड़ा हूँ, तब तक दुनिया का हर सच छोटा है। अर्जुन तब तक कुछ नहीं समझ पाया जब तक उसने खुदकों नहीं झुकाया, जब तक उसने “मैं” नहीं छोड़ा। और वही क्षण आत्मा के जागरण का होता है जब इंसान कहता है “जो होना है, अब बस हो जाए।” जब तू वास्तविकता को उसी रूप में स्वीकार लेता है, तब तू ईश्वर के साथ बहना शुरू करता है, लड़ना बंद कर देता है। ईर्ष्या, शिकायत, पछतावा ये सब उस इंसानी कीड़े के लक्षण हैं जिसने खुद को नहीं जाना। जो सच्चा साधक है, वो किसी से कोई compare नहीं करता। जिसने खुद को जान लिया, उसे किसी से जलन नहीं हो सकती। वह जानता है कि हर आत्मा का मार्ग अलग है। जो दूसरों के सुख पर कुंठित है, वह खुद के दुख का निर्माता है।

मृत्यु को देखकर भागने वाले असंख्य हैं, पर उसे देखकर मुस्कुराने वाले बोहोत कम हैं। जो मरने से डरता है, वह जीने के लायक नहीं। भीष्म के जैसा मरने की कला सिखनी है जब चाहो, जब ठानो, तब प्राण छोड़ दो, क्योंकि तब मृत्यु अपने अधीन हो जाती है। मृत्यु तब तक डराती है जब तक तू खुद को शरीर समझता है। जिस दिन तू समझ गया कि तू बॉडी नहीं, चेतना है, उस दिन मृत्यु भी तुझे प्रणाम करती है। पैसा, इज्जत, सुरक्षा ये सब धोखे हैं। जितना तू भविष्य के लिए जोड़ता है, उतना तू वर्तमान से कटता जाता है। जो साधक अपने कल के भय में जीता है, वह आज की ज़िंदगी खो देता है। जीवन का एक ही मंत्र है जो चाहिए नहीं, उसे छोड़ देना है। हर वस्तु, हर संबंध, हर आदत जो तुझे बोझ लगती है, उसे काट फेंक। मुक्त होना सजावट से नहीं, त्याग से होता है।

देवताओं का सम्मान कर, पर उनसे भीख मत माँग। ईश्वर भिखारियों का साथी नहीं, योद्धाओं का साक्षी है। जो कर्म नहीं करता, जो सिर्फ प्रार्थना में डूबा रहता है, वह खुदकों को धोखा दे रहा है। ईश्वर तुझे नहीं चलाएगा, तू खुद उठेगा तो ईश्वर तेरे पीछे खड़ा होगा। यही साक्षीभाव है। प्रेम, वासना, और भावना ये तीन रस सबसे मीठे ज़हर हैं। जो इनसे ऊपर उठ गया, वही योगी है। जो प्रेम को अधिकार समझता है, वह पथभ्रष्ट है। जो वासना को प्रेम समझता है, वह पशु है। जो इन सबको देखता है पर बंधता नहीं, वही ईश्वर का दूत है। स्थान का कोई अर्थ नहीं, स्थिति का अर्थ है। चाहे तू राजमहल में बैठा हो या गुफा में, अगर मन स्थिर है, तो वही तीर्थ है। अगर मन अस्थिर है, तो स्वर्ग भी नरक बन जाता है। साधना का कोई भूगोल नहीं, केवल मन का संतुलन है।

सम्मान को हमेशा देह से ऊपर रखो। शरीर मिट्टी है, पर गरिमा अमर है। जिसने अपने सत्य से समझौता किया, वह चाहे जितना जिए, मरा हुआ है। जो अपने पथ से नहीं डिगा, वही जीवित है। जीवन का मूल्य सांसों से नहीं, संकल्प से मापा जाता है। धर्म का अर्थ पूजा नहीं, अपने मार्ग पर अडिग रहना है। अर्जुन ने युद्ध किया, राम ने वनवास जिया, कृष्ण रण में मुस्कुराया तीनों का सत्य एक ही था: जो अपने धर्म से नहीं हटा, वही मुक्त हुआ। यही योग है, यही ध्यान है, यही ब्रह्म है।

दुनिया तुझे हर क्षण गिराने की कोशिश करेगी। लोग कहेंगे भावनात्मक बन, प्रेम कर, संवेदनशील बन पर सच्चाई यह है कि जितना तू संवेदनशील होगा, उतना कमजोर होगा। अध्यात्म का मार्ग लोहे जैसा कठोर है। यहाँ करुणा नहीं, यहाँ स्पष्टता चाहिए। यहाँ भावना नहीं, यहाँ साक्षी चाहिए। विरक्ति का अर्थ भागना नहीं है, समझना है। जब तू देख लेता है कि हर चीज़ अस्थायी है, तो मोह अपने आप गिर जाता है। जो संसार को गंभीरता से लेता है, उसने अभी कुछ नहीं समझा। जीवन खेल है, पर जो इसे असली समझता है, वही हारता है। हर दिन अपने भीतर के युद्ध को देख कब मन डरता है, कब ईर्ष्या करता है, कब बहकता है। वही तेरा कुरुक्षेत्र है। वहाँ कृष्ण भी तू ही है, अर्जुन भी तू ही है। जब तू खुद अपने भीतर के युद्ध में विजयी होगा, तभी बाहर की दुनिया झुक जाएगी।

साधक वही है जो अकेला चलता है, न प्रशंसा की चाह में, न संग की लालसा में। एकांत में जो अडिग है, वही आदिशिव से जुड़ा है। जो भीड़ में मजबूत दिखता है, वह भीतर से टूटा हुआ है। अकेला होना एक तप है। मौन रहना एक युद्ध है। विरक्ति एक विजय है। जीवन का रहस्य यही है कुछ मत पकड़, कुछ मत मांग, किसीसे मत डर कोई माई का लाल नहीं जो तेरा बाल भी बांका कर सके। बस देखते रह, ज्वालामुखी जैसा जलते रह और आगे बढ़ते रह। और जब मौत सामने आए, तो उसी शांति से देखो जैसे उगते सूरज को देख रहा है। क्योंकि जिसने जीवन को साक्षीभाव से देखा, उसके लिए मृत्यु भी बस एक और परिवर्तन है।

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

तांत्रिक की शक्तिया

तांत्रिक के पास शक्ति नहीं होती, वह स्वयं शक्ति का रूप होता है। उसके पास जो दिखता है, वह भ्रम है। लोग सोचते हैं कि तांत्रिक उड़ सकता है, दीवार पार कर सकता है, तत्वों को नियंत्रित कर सकता है पर ये सब केवल बाहरी खेल हैं। असली तंत्र वहां से शुरू होता है जहां तुम्हारा भय खत्म होता है। तांत्रिक अपने मन को मार चुका होता है, इसलिए संसार की कोई ताकत उस पर शासन नहीं कर सकती। उसकी चेतना तत्वों के भीतर प्रवेश कर चुकी होती है, इसलिए हवा, अग्नि, जल, मिट्टी, आकाश सब उसके आदेश को पहचानते हैं।

वह मंत्र से नहीं, संकल्प से कार्य करता है। उसकी दृष्टि में जप, तिलक, यंत्र, रूद्राक्ष, अग्नि सब उपकरण हैं, साधन नहीं। वह साधन का दास नहीं होता, वह साधना का स्वामी होता है। जो साधना को पकड़कर बैठा है, वह अभी बच्चा है, जिसने साधना को भस्म कर दिया वही तांत्रिक है।

तांत्रिक किसी को चमत्कार नहीं दिखाता, क्योंकि वह जानता है कि चमत्कार दिखाने वाला शक्ति खो देता है। उसकी ऊर्जा एक तलवार की तरह धारदार होती है, पर वह उसे म्यान में रखता है। जो हर बात पर शक्ति दिखाना चाहता है, वह व्यापारी है, साधक नहीं। असली तांत्रिक मौन रहता है, क्योंकि उसकी हर सांस मंत्र होती है। वह न किसी से डरता है, न किसी को डराता है, वह केवल साक्षी है आदिशिवोहम का।

उसके पास देखने की शक्ति भी है और मिटा देने की भी। वह समय को मोड़ सकता है, लेकिन समय को छूता नहीं। वह मृत्यु को रोक सकता है, लेकिन मृत्यु से भागता नहीं। वह जानता है कि शक्ति किसी को दी नहीं जाती, छिनी नहीं जाती, शक्ति केवल एक अवस्था है जब आत्मा खुद को ईश्वर स्वीकार कर लेती है।

जो खुद को तांत्रिक कहता है, वह नहीं है। जो खुद को कुछ नहीं मानता, वही असली तांत्रिक है। उसका अस्तित्व तलवार की धार पर नाचता है, और वह नाच ही उसका तंत्र है। जो उस नाच को देख लेता है, वही जानता है कि आदिशीव न तो शांति है न हिंसा, आदिशिव केवल जागरण है और तांत्रिक उस जागरण का प्रहरी है।

शक्ति उसके हाथ में नहीं, उसकी दृष्टि में होती है। और उसकी दृष्टि में झाँकना किसी मनुष्य के लिए संभव नहीं, क्योंकि वह देखता नहीं, वह आर-पार भेद देता है। तांत्रिक वो नहीं जो देवता बुला ले, तांत्रिक वो है जो खुद देवत्व में विलीन हो जाए। बाकी सब जादू है, तमाशा है, और अज्ञान का व्यापार है।

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

तंत्र और तांत्रिक - 2

आखरी शब्द

तंत्र का नाम सुनते ही लोगों के दिमाग़ में सबसे पहले क्या आता है? काला जादू, वशीकरण, भूत–प्रेत, श्मशान की साधना, पिशाचिनी और यक्षिणी की पूजा। यही चित्र समाज में गढ़ दिया गया है। क्यों? ताकि लोग तंत्र से डरते रहें। ताकि वे इसके असली अर्थ तक पहुँच ही न पाएँ। ढोंगी, पाखंडी और अंधविश्वास के ठेकेदारों ने तंत्र को इतना गंदा और डरावना रूप दिखाया कि साधारण इंसान उसे सुनकर ही घबरा जाए। लेकिन सच यह है कि तंत्र का इन सब से कोई लेनादेना नहीं है। तंत्र का मतलब काला जादू नहीं, तंत्र का मतलब है चेतना का विज्ञान।

जो लोग तंत्र को भूतप्रेत सिद्ध करने या किसी को वशीकरण में बाँधने का साधन मानते हैं, वे न सिर्फ़ मूर्ख हैं बल्कि तंत्र के अपमान के अपराधी भी हैं। तंत्र इंसान को भिखारी नहीं बनाता, जो भगवान के सामने बैठकर रोता रहे “हे भगवान, मुझे ये दे, मुझे वो दे।” तंत्र ऐसे कमजोर लोगों के लिए नहीं है। तंत्र योद्धा चाहता है। ऐसा योद्धा जो अपने डर से लड़ सके, अपनी इच्छाओं पर विजय पा सके और अपनी चेतना को विस्तार दे सके।

तंत्र इंसान को शेर बनाता है। और यह मत भूलो कि बली हमेशा बकरे की दी जाती है, शेर की नहीं। तंत्र का साधक वह नहीं होता जो डरकर देवी–देवताओं के आगे सौदेबाज़ी करे। तंत्र का साधक वह होता है जो अपने भीतर की सबसे अंधेरी खाई में उतरने की हिम्मत रखता हो। वहाँ जहाँ कोई दूसरा जाने की सोच भी न सके। तंत्र वही है जो इंसान को अपने ही भ्रम, अपनी ही वासनाओं, अपने ही अंधकार से भिड़ा दे। और जब इंसान उस युद्ध में जीत जाता है तो वह साधारण नहीं रहता, वह असाधारण हो जाता है।

तंत्र का मार्ग अनुभव का मार्ग है, विश्वास का नहीं। बाकी सभी धर्म, सभी मज़हब, सभी पाखंडी गुरुओं का खेल तुम्हें आस्था के जाल में बाँधता है। वे कहते हैं “विश्वास करो, आँख मूँदकर मान लो।” लेकिन तंत्र कहता है “अनुभव करो।” क्योंकि अनुभव में झूठ नहीं टिक सकता। यही कारण है कि तंत्र हमेशा से समाज के लिए खतरा रहा। धर्म के ठेकेदारों ने इसे बदनाम किया क्योंकि उन्हें पता था कि अगर इंसान तंत्र को समझ गया, तो वह उनके जाल से मुक्त हो जाएगा। और एक मुक्त इंसान सबसे खतरनाक होता है, क्योंकि वह किसी का गुलाम नहीं रहता।

आज का इंसान धर्म को व्यापार बना चुका है। मंदिर दान और हवन की आहुति के पीछे सौदे करता है। साधुसंतों का वेश पहनकर पाखंडी लोग जनता को डराते हैं, शाप–वरदान का नाटक करके भीड़ को गुलाम बनाते हैं। लेकिन तंत्र इस नाटक को नकार देता है। तंत्र कहता है कि सत्य को किसी ग्रंथ, किसी मूर्ति, किसी नियम या किसी ठेकेदार में मत ढूँढो। सत्य तुम्हारे भीतर है, और उसे जगाने का तरीका है—तंत्र।

श्मशान को तंत्र का केंद्र बताया गया ताकि लोग और भी डरें। लेकिन असलियत यह है कि श्मशान से बड़ा कोई गुरु नहीं, क्योंकि वह सिखाता है कि यह शरीर नश्वर है। लेकिन ढोंगी बाबाओं ने श्मशान साधना का मतलब ही बदल डाला। उन्होंने इसे अंधविश्वास और डर का तमाशा बना दिया। असली तंत्र साधना न तो किसी को डराने के लिए होती है, न किसी को बाँधने के लिए। यह तो साधक के अपने भीतर मृत्यु के भय को समाप्त करने के लिए होती है। और जो मृत्यु के भय से मुक्त हो गया, उसके लिए फिर कोई डर नहीं बचता।

तंत्र तुम्हें वह ताक़त देता है जो किताबें नहीं दे सकतीं, जो मंदिर की घंटियाँ नहीं दे सकतीं, जो गुरुओं के प्रवचन नहीं दे सकते। क्योंकि तंत्र सत्य का सीधा सामना कराता है। इसमें कोई पर्दा नहीं, कोई अभिनय नहीं। यह नग्न है, कच्चा है, खतरनाक है। लेकिन जो इसे झेल ले, उसके लिए फिर असंभव कुछ नहीं।

समाज ने तंत्र को गाली दी, क्योंकि समाज को डरपोक इंसान चाहिए। ऐसा इंसान जो सवाल न करे, जो चुपचाप नियमों का पालन करे, जो भीड़ में खोकर जीता रहे। लेकिन तंत्र ऐसा इंसान नहीं चाहता। तंत्र उस इंसान को जन्म देता है जो सवाल करे, जो विद्रोह करे, जो नियम तोड़े और सत्य को अपने अनुभव से जीए। यही कारण है कि तंत्र साधक भीड़ से अलग दिखता है। वह अकेला होता है, लेकिन शक्तिशाली होता है। वह मौन होता है, लेकिन उसकी मौन उपस्थिति भी कंपकंपी पैदा करती है।

तंत्र कोई डरावना खेल नहीं, तंत्र कोई वासना का साधन नहीं। यह तो आत्मा को मुक्त करने का विज्ञान है। जिसे सिर्फ़ वही समझ सकता है जो शेर बनने की हिम्मत रखता हो। बाकी सब डरते रहेंगे, भ्रम में जीते रहेंगे। याद रखो तंत्र की आग से वही गुजरता है जो जलने की हिम्मत रखता है। बाकी तो हमेशा राख को ही भगवान मानते रहेंगे।

- शिवांश जमदग्नि

कली और कलयुग - 4

उत्तम चरित्र का निर्माण और निर्णय क्षमता

पिछले भाग में चरित्र निर्माण की बात कही थी कि तंत्र में उच्च चरित्र का निर्माण होता है। वो कैसे? चलो समझते है

रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई। 

ये पंक्ति हम जानते है रामायण से है सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग में जो लोग थे उनके चरित्र हमारे मस्तिष्क में छप चुके है। 

अब ये चरित्र क्या होता है? चरित्र या तो माता पिता से मिले संस्कारों से निर्माण होता है या फिर गुरु की संगत के कारण निर्माण होता है। जैसा गुरु होगा वैसा ही शिष्य बनता है।

अज्ञानवश कलयुग में माता पिता ही अपने बच्चों का चरित्र निर्माण होने नहीं देते। क्यों कि वो खुद परिस्थितियों के चलते compromise करना शुरू करते है और वही बच्चे देखते हुए बड़े होते है। जब ऐसे बच्चे बड़े होते है तो समाज में भी वैसे ही व्यवहार करते है जैसा उनके माता पिता ने किया। 

कलयुग में एक व्यक्ति के २ चरित्र होते है एक वो जो वो लोगों को दिखाता है एक वो जो वो स्वयं को दिखाता है। कलयुग से पूर्व लोगों के चरित्र इतने दमदार इसलिए थे क्यों कि वो किसी भी शुल्क पर, किसी भी परिस्थिति में कठोर निर्णय और और निर्णय पर डंटे रहने का प्रण नहीं तोड़ते थे।

गंगापुत्र भीष्म की प्रतिज्ञा, राजा शिबी, राजा हरिश्चंद्र, और राजा दशरथ का वचन तो सबको पता होगा ही... अगर नहीं पता तो क्या घंटा Spiritual Awake बनेगा/बनेगी तू? 

तुम आध्यात्मिक बनने योग्य हो या नहीं ये जानना है तो थोड़ा गहराई से सोच कर देखना... 

जीवन के हर मोड पर आपके सामने २ पर्याय मिले होंगे जिसमें एक जो आसान होगा, परन्तु वो कम समय के लिए होगा या यूं कहो क्षणिक होगा। दूसरा जो कठिन होगा, शुरुआत में कठिनाई होगी परंतु लंबे समय तक आपके जीवन में सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।

साधारणतः सांसारिक लोग सदैव आसान पर्याय को चुनते है ये सोचकर कि कोई बात नहीं आगे जो होगा देख लेंगे पर उनकी यही बात उनके छोटी सी समस्या का बड़ा रूप लेने का कारण बनती है। इसके पीछे की वजह होती है एक comfort लेवल में रहने की आदत, सुरक्षित महसूस करने की आदत। अभी सब ठीक हो रहा है न? ऐसे ही चलने देते है भविष्य का बादमें देखेंगे ये मानसिकता! जोखिम उठाए बिना, परिश्रम किए बिना सबकुछ मिल जाए ये अपेक्षा सांसारिक व्यक्ति के जीवन में समस्याओं को बढ़ावा देती रहती है और वो जीवनपर्यंत उन समस्याओं को सुलझाते सुलझाते एक दिन मृत्यु को प्राप्त होता है।

वही दूसरी तरफ

आध्यात्मिक व्यक्ति कठिन निर्णय और कठिन मार्ग चुनने से पीछे नहीं हटता। क्यों कि वह सोचता है चाहे आज थोड़ी सी पीड़ा सहनी पड़ जाए पर कोई बात नहीं पर इस निर्णय से भविष्य में कोई समस्या खड़ी नहीं होगी, भविष्य उज्वल होगा। जो व्यक्ति संघर्ष से मुंह नहीं मोड़ता हर समस्या से लड़कर सही निर्णय लेने का साहस दिखाता है। वह भविष्य में आने वाली अनेकों लड़ाइयां पहले ही लड़ चुका होता है इसलिए वो समय के साथ निश्चिंत होकर जीवन व्यतीत करता है।

तो आपने अबतक ऐसे situations में किस मार्ग को चुना? आसान या कठिन?

कुछ लोग स्वयं को आध्यात्मिक मानते जरूर है पर वे संघर्ष से भागते है, संघर्ष से समस्याओं से भागने वाला, अपने कर्म से भागने वाला, सत्य को स्वीकार न करने वाला कोई भी व्यक्ति आध्यात्मिक हो ही नहीं सकता। वे संसार की माया और मोह में भ्रमित होकर आसान मार्ग चुनते जाते है और ऐसे भ्रमित स्वयंघोषित आध्यात्मिक(?) व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम क्षणों में असहाय होकर अपने मृत्यु की प्रतिक्षा करता है, परन्तु अनुचित मार्ग अपनाने के कारण उसके दुष्कर्मों में इतनी बढ़ोतरी हो चुकी होती है कि मृत्यु भी जल्दी दर्शन नहीं देती। जहां आपने अपने वचन को, संकल्प को तोड़ा वहां आपने अपने आत्मा के टुकड़े किए, भले ही ये कोई नहीं देख रहा पर आपके अंदर की आत्मा देख रही है। 

जिसे भी अपने उत्तम भाग्य का निर्माण करना है तो उसे उत्तम चरित्र का निर्माण करना ही होगा। क्यों कि सतयुग हो या कलियुग एक उत्तम चरित्र ही उत्तम भाग्य का निर्माण कर है।

अब उत्तम चरित्र का निर्माण कैसे होगा?

विचार, वाणी, कर्म, दिनचर्या इन सबके मेल से बनता है चरित्र...और इसी चरित्र का निर्माण किया जाता है USIP के उपक्रम में...

चरित्र बनाने के लिए क्या आवश्यक है? धैर्य, कर्म और शक्ति...

लोग कहते है हमारे साथ भगवान खड़े है, हमने पूर्ण जीवन केवल दूसरों का भला ही किया या हम धर्म से ही चले तो क्या हमारे साथ जैसे महाभारत में पांडवों के साथ न्याय हुआ वैसे ही होगा?

बड़े बड़े ज्ञानी लोग तो यही ज्ञान देते है कि धर्म से चलो भगवान तुम्हारा न्याय करेगा। 

फिर एक सवाल आता है...

जब महाभारत में पांडवों के पक्ष में स्वयं भगवान होते हुए और पांडवों ने सदैव धर्म से निर्वाह करते हुए भी वो अधर्म से हारते रहे। पर जब द्रौपदी का चीरहरण हुआ तब कृष्ण ने उनको १४ साल कड़ी तपस्या (यहां तपस्या का अर्थ केवल मंत्र जाप और पूजा से नहीं है अपनी skills को और डेवलप करने से है कर्म करने से है) करने को कहा तब वो गए और अपनी अपनी स्किल्स डेवलप की। 

अर्जुन ने अपनी धनुर्विद्या को और ताकतवर बनाया और शिव की आराधना करके पाशपतास्त्र प्राप्त किया।
भीम ने अपने बाहुबल पर काम किया और हनुमान को प्रसन्न किया।
नकुल ने शस्त्रविद्या, सहदेव ने संप्रेषण विद्या और दोनों ने आयुर्वेद की स्किल्स पर काम किया और दोनों ने अश्विनी कुमार को प्रसन्न किया।
युधिष्ठिर ने वनवास के 14 वर्षों में धर्म, धैर्य, ज्ञान और आत्मसंयम की तपस्या की, जिससे उन्हें सत्य का बोध, यमराज का साक्षात्कार और धर्मराज के रूप में आत्मोन्नति प्राप्त हुई।
ये सब करने के बाद जब महाभारत का युद्ध हुआ तब इन्हें न्याय मिला।

इसका मतलब सिर्फ धर्म से चलना और भगवान का हमारे पक्ष में होना ही काफी नहीं। आपके साथ न्याय तभी होगा जब आप अपना सामर्थ्य से Problems को फेस करोगे और कर्म करके पात्रता सिद्ध करोगे।
अपने अपने कर्म को करते हुए अपनी स्किल्स को एक अलग लेवल पर लेकर जाना भी उतना ही जरूरी है।
लोग सालोसाल अपनी वही घिसिपिटी जिंदगी जीते है, और बोलते है हमने किसीका बुरा नहीं किया, धर्म से चलते है, भगवान भी हमारे पक्ष में है...आज हम दुखी है तो क्या हुआ अंत में न्याय हमे ही मिलेगा...बाबाजी का ठुल्लू मिलेगा..!

जब द्वापरयुग में पांडवों को भगवान के साक्षात उनके पक्ष में होने के पश्चात भी अपनी योग्यता और सामर्थ्य का प्रदर्शन करना पड़ा तो कलयुग में तो प्रत्यक्ष भगवान को तो आजतक तूने देखा भी नहीं है (सपने में और इमैजिनेशन में देखा या दर्शन हुए वो सब तेरा शेखचिल्ली के हसीन सपने है) अब बता तू किस खेत की मूली है बे?

वीर भोग्य वसुंधरा...जिसमें सामर्थ्य है, शक्ति है... वहीं न्याय को प्राप्त कर सकता है...और वही न्याय करता है। कमजोर लोग नियमों का पालन करते है और ताकतवर लोग नियम बनाते है।

देखा होगा जब आप नो पार्किंग में आपकी टू व्हीलर लगाते है तो आपकी गाड़ी उठा ले जाते है, आप हेलमेट नहीं पहने तो आपको पेनल्टी होती है। पर वही किसी पावरफुल व्यक्ति की गाड़ी खड़ी होने से ट्रैफिक जाम हो तो भी कोई कुछ नहीं करता। अगर उसने गाड़ी से किसी व्यक्ति को उड़ा भी दिया तो भी केस दर्ज नहीं होती।

उसी प्रकार कमजोर लोग अध्यात्म को समझ नहीं सकते, क्यों कि अध्यात्म समझने के लिए पहले स्वयं को जानना होता है और स्वयं को जानना, अपनी कमियों को और शक्ति को जानना और अपने उस रूप को उस कमी को, शक्ति को हर रूप में अपनाना कमजोरों के बस की बात नहीं...! क्यों कि कमजोर लोग परिस्थितियों के सामने अपने हथियार डालने में माहिर होते है और ऐसे लोग अपने स्वार्थ और कंफर्ट के लिए गधे को भी अपना बाप बना सकते है।

इसलिए वो दिखावा करते जाते है अध्यात्म का, अपनी व्याकुलता, अपनी दयनीय अवस्था छिपाने के लिए धर्म, अहिंसा, शास्त्र का सहारा लेते है। शास्त्रों की दुहाई देते है कि शास्त्र में ये लिखा है वरना मैं ये कर देता वो कर देता। 

मेरा धर्म, अहिंसा और शास्त्र को विरोध नहीं है...पर केवल धर्म, अहिंसा और शास्त्रों पर चलने से कलयुग में न्याय नहीं मिलेगा आत्मविश्वास, धैर्य और सामर्थ्य भी अनिवार्य है...! और ये सब कर्म करने से ही प्राप्त होते है!

क्रमश:


शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

तंत्र और तांत्रिक - 1

डरना मना है 😰

कुछ लोग सोच रहे होंगे टॉपिक आज ऐसा क्यों है? पर शायद इस लेख की जरूरत है इसलिए आज इस विषय पर संक्षिप्त मे लिख रहा हु!( लेख लिखने के बाद देखा की मेरा संक्षिप्त इतना बड़ा है🧐) 

कुछ लोग तांत्रिकों से डरते है, कहते है फलाना तांत्रिक है उसने हमपे ये कर दिया वो कर दिया। तांत्रिक बुरे होते है काला जादू करते है। उनके पास जिन है, छेड़ा है, कोई किसी देवी का बोहोत बड़ा भगत है, किसी पीर का भगत है, उसमे कोई सवारी है, नवनाथों की शाबरी विद्या का सिद्ध है फलाना फलाना... और सबसे बड़ी बात वो 'तांत्रिक' है! - अजी घंटा

आजतक लोगों का पाला कभी किसी सच्चे तांत्रिक से नहीं पडा है इसलिए ऐसे दो कौड़ी के षट्कर्म के मंत्रों को रटने वालों को, सवारी आने वालों को, काला जादू करने वालों को ही तांत्रिक समझकर डरने लगते है। 

आजकल हर कोई झाडफुक करने, सवारी आने वाला खुदकों तांत्रिक बताकर घूमने लगा है। जिसमे 99% पाखंडी है। 

तंत्र शास्त्र की गहराई सबके बस के बात नहीं होती, garage मे काम करने वाला मेकेनिक एंजिनीयर नहीं होता। छोटे मोठे नुस्खे बताने वाला डॉक्टर नहीं होता। उसी प्रकार झाडफूँक, लोकदेवता, भूत-प्रेत-आत्मा भगाने वाला ओझा हो, किसी देवी देवता की सवारी आने वाला भगत, धार्मिक कार्य जैसे ग्रह शांति, वास्तु शांति कराने वाला पंडित हो, या कुंडली मिलान कराने वाला ज्योतिषी हो या वशीकरण करने वाला बंगाली बाबा हो ऐसे व्यक्ति तांत्रिक नहीं हो सकते। तांत्रिक बनना केवल लाल काले कपड़े पहनकर झाड़फुक करना नहीं होता, मानव खोपड़ी लेके घूमने वाला या नशे मे घूमने वाले लोग तांत्रिक कदापि नहीं हो सकते। तांत्रिक ये अध्यात्म (spirituality) का अत्याधिक सन्मानजनक पद है। 

जैसे एक इंजीनियर चाहे तो garage मे मैकेनिक का काम कर सकता है, डॉक्टर चाहे तो चलते फिरते छोटे मोटे रोगों की दवा बता सकता है इलाज भी कर सकता है क्यों की उसको उस क्षेत्र का पूर्ण ज्ञान है। एक तांत्रिक झाड़फुक वाले का कार्य, ज्योतिषी का कार्य, पंडित का कार्य, योग गुरु का कार्य साथ ही आधुनिक technology या साइंस से जुड़ा कार्य बड़ी आसानी से कर सकता है क्यों की इन सभी क्षेत्रों का गूढ ज्ञान उसके पास होता है। परंतु एक garage का मैकेनिक इंजीनियर नहीं बन सकता, वैसे ही झाड़फुक वाला, भूत प्रेत वीर पूजने वाला, देवताओ की सवारी लेने वाला भगत, धार्मिक कार्य करने वाला पंडित, ज्योतिषी या किसी शास्त्र का विशेषज्ञ तांत्रिक नहीं कहलाया जाता।  

कौन होता है तांत्रिक?

तांत्रिक यह पद कोई छोटी बात नहीं। एक तांत्रिक मंत्र, यंत्र, तंत्र, ध्यान, योग, ज्योतिष विज्ञान, मानव शरीर और कुंडलिनी विज्ञान का ज्ञाता तो होता ही है। साथ ही वो आधुनिक विज्ञान जैसे केमिस्ट्री, फिज़िक्स, मनोविज्ञान, विद्या, महाविद्या, पराविद्या, अपरा विद्याओ का ज्ञाता भी होता है। 

एक तांत्रिक कितने विषयों मे पारंगत होता है इसकी अगर मैं छोटीसी सूची भी यहा लिख दु तो लोग कहेंगे एक व्यक्ति इतना सारा ज्ञान कैसे रख सकता है? एक तांत्रिक केवल शारीरिक रूप से नहीं आत्मिक स्तर पर भी अनेक विषयों का अभ्यास करता रहता है उसका अभ्यास आत्मा के स्तर पर भी निरंतर चालू रहता है। 

इस जगत के सबसे बड़े तांत्रिक का नाम देवो के देव महादेव है, ज्यों समय आने पर अघोर रूप भी धर लेते है, विष पीते है पर शरीर पर उसका परिणाम नहीं होने देते, देवो के डॉक्टर बनकर बैद्यनाथ भी बनते है, योगेश्वर बनकर योग का ज्ञान भी देते है, नटराज बनकर कला के देवता भी बनते है, त्रिपुरारी बनकर तीन लोको का निर्माण का ज्ञान त्रिपुरासुर को दे सकते है और उसके बनाए तीन लोको का अंत भी करने मे सक्षम होते है। 

अब पूछता हु जिसके पास इतना सारा ज्ञान है वो झाड़फुक करके चोटी मोटी कमाई करेगा?

भूत प्रेत आत्मा भागकर लोगों के जिंदगी सवारेगा? देवी देवता की सवारी लेके बाल झटककर नाचेगा?

जिसका connection सीधा देवताओ से है वो इंसानों के बीच इंसानों वाली हरकते (मेरी भाषा मे रंडी रोना) करेगा? 

लोगों के भीड़ मे घूम घूम कर या सभा लगाकर हनुमान, राधाजी, महादेव, कृष्ण के रूपों के बारेमे कथावाचन करेगा? (मेरी भाषा मे बोल बच्चन देगा?) 

तांत्रिक को ना अपमान का भय होता है न सन्मान का लालच वो कभी सामने नहीं आता, उसे इंसानों से किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं होती, उसे समाज सुधारने मे कोई रस नहीं होता क्यों की उसे पता है ये इंसानी कीड़े कभी सुधरने वाले नहीं है, कलयुग मे तो वैसे भी कोई चांस नहीं है सब मरने वाले है कुत्ते की मौत चाहे इस जनम मे ना हो अगले जनम मे या उसके अगले। तांत्रिक को किसिका गुरु बनने मे रस नहीं होता पर जब वो किसिको मार्गदर्शन करता है तो उसकी अपेक्षा होती है की वह व्यक्ति पूर्ण समर्पण के साथ बिना किसी संदेह के उसकी बात माने। 

क्यों की शंका को त्यागे बिना कोई शंकर नहीं बन सकता!

अब ये सारी बाते मैं क्यों बता रहा हु? क्या मुझे समाज सुधारने का कार्य करना है? नहीं मुझे केवल इतना पूछना है आजकल सोशल मीडिया पर तंत्र सिखाने वाले बोहोत सारे (स्वयघोषित तांत्रिक) दिख रहे है, क्या वो सच मे तंत्र जानते है? एक तांत्रिक ही तंत्र की योग्य शिक्षा दे सकता है और तंत्र ये आत्मउन्नति सिखाता है, एक अडिग चरित्र बनाता है, ज्ञानी बनाता है अगर तांत्रिक ज्ञानी नहीं होते तो राम ने रावण से वैश्विक ज्ञान लेनेके लिए लक्ष्मण को बोला नहीं होता क्यों की रावण स्वयं एक तांत्रिक था। पूरे विश्व का जिसके पास ज्ञान हो वो होता है तांत्रिक। झाड़फुक, टोने टोटके, भूतप्रेत, वशीकरण जैसी टुच्ची बातों मे तांत्रिक का रस नहीं होता, और ना ही ऐसे चीजों मे रस रखने वालों को वो पास आने देता है और ना सिखाता है। 

क्रमश:

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कली और कलयुग - 3

 (भाग तीन - रहस्य क्या है और क्यों है?)

एक बच्चा जन्म लेता है, उसके लिए केवल उसकी माता ही सबकुछ है, परिवार ही विश्व है सबकुछ है फिर जब उसे थोड़ी बुद्धि और समझ आती है तो घर के बाहर निकलता है उसे पता चलता है की घर के आसपास और भी घर है और लोग है। फिर कुछ समय के बाद वो जानता है घर एक मोहल्ले मे है, कुछ दिन बाद जैसे मेरा मोहल्ला है वैसे अनेक मोहल्ले है एक शहर है। थोड़ी और समझ आने के बाद वो जानता है की ऐसे कई शहरों से मिलकर एक राज्य बंता है और कई राज्यों को मिलकर एक देश और कई देशों को मिलकर ये पृथ्वी और इस प्रकार समय के साथ उसकी बुद्धि बढ़ते हुए इस रहस्य को जानती है। 

अब सोचो कल ही पैदा हुवा बच्चा है और लोग उसे बता रहे है एक ऐसा विश्व है जिसमे सूरज है चंद्र है तारे है क्या वो इसे समझ पाएगा? वो छोड़ो वो उसके किसी काम का है? उसकी समझ बस उसके माँ तक सीमित है वो अपने बाप तक को नहीं पहचानेगा। तो तुम्हारे रहस्य का क्या आचार डालेगा? 

रहस्य कहो गूढ कहो गुप्त कहो या गुह्य कहो इस संसार मे सबकुछ गोपनीय ही है। कोई भी रहस्य गोपनीय रखने के कुछ कारण होते है। अगर सोचो आपके बैंक अकाउंट के सारे डिटेल्स पब्लिक मे डाल दिए जाए तो चोर उचक्के आपको लूट लेंगे। और अगर आपके पास कोई अनोखा रहस्य पता चला है जैसे सोना बनाने की विधि तो पहले आप सोना बनाकर खुदका जीवन सँवारोगे या वो पब्लिक मे सोशल मेडिया पर या यूट्यूब पर जाकर बताओगे? 

यूट्यूब फ़ेसबुक इंस्टाग्राम पॉडकास्ट और रील्स पर आपको ऐसे कई ज्ञानी? (प्रकांड घनघोर अखंड पराक्रमी महाज्ञानी?) लोग मिलेंगे जो रहस्यमयी गुप्त चीजे बता रहे है और viral हो रहे है? अगर ये गुप्त है तो पब्लिक मे क्यों बताई जा रही है बाते कभी सोचा है? केवल आपको भ्रमित करने के लिए। जीतने आपके मस्तिष्क मे विचारों के प्रश्नों के कोहराम मचेंगे उतना ही समय लगेगा आपको सत्य तक पहुचने के लिए और कलियुग तो चाहता ही है आपके विचार कभी खतम न हो। जिस दिन विचारों का आवरण हटेगा माया क्षीण हो जाएगी और सत्य दृष्टिगोचर हो जाएगा सभी रहस्य प्रकट हो जाएंगे। 

अब कुछ लोग बोलेंगे रहस्य को उजागर कर देना चाहिए रहस्य क्यों रखना है? तो समाज मे कुछ चीजे १८+ साल की उम्रतक रहस्य क्यों बनाई रखी जाती है? क्यों की उस बातों का महत्व समझने के लिए बुद्धि परिपक्व नहीं होती है इसलिए १८+ साल की उम्रतक उसे सामने नहीं लाया जाता। जब बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व हो जाते है तब ज्यादातर बच्चों को १८+ बाते समझानि नहीं पड़ती वे स्वयं ही सब जान लेते है। क्यों की उनका मन, शरीर और बुद्धि तीनों उस रहस्य को समझने लायक बन गया होता है। 

ठीक वैसे ही अध्यात्म मे भी सब उजागर ही है रहस्य कुछ भी नहीं पर समय के साथ एक एक चीज समझने के लिए परिपक्वता आने के बाद ही वो रहस्य सामने आता है। कोई भी किताबे या यूट्यूब के वीडियो देखकर कोई रहस्य नहीं समझ सकता। अगर समझ भी जाए तो हजारों सवाल, शंका और संशय मन मे बीठा लेगा जैसे अगर किसी ८-९ साल के बच्चे के सामने १८+ बाते आ जाए तो उसका मन प्रश्नों से भर जाएगा, वो अधिक से अधिक जानकारी लेने के लिए तड़प उठेगा। और इसीमे वो बुरी संगत मे पड़कर गलत कदम भी उठाता है जैसे आज समाज मे हो रहा है। यही अध्यात्म मे भी हो रही है लोगों को अजीब अजीब रहस्य और गूढ बाते रंगीन सजाकर बताई जा रही है। न बताने वाला बौद्धिक रूप से परिपक्व है न सुननेवाला बौद्धिक रूप से  परिपक्व है। दोनों बाल बुद्धि है जब ऐसा कॉम्बो बन जाए तो उससे लाभ की आशंका है या हानी की? 

कोई भी आध्यात्मिक व्यक्ति जो बौद्धिक रूप से परिपक्व हो और गुरु परंपरा से संलग्न हो वो कभी भी गूढ बाते रहस्यमई बाते तबतक किसिको नहीं बताता जब्तक वो उस व्यक्ति की व्यक्तिगत परीक्षा लेकर आकलन न कर ले की अमुक रहस्य जानने लायक वो व्यक्ति परिपक्व हुआ भी है या नहीं उसके बाद ही वो उस मार्ग पर उसको मार्गदर्शन करता है, अन्यथा नहीं। यदि वो परिपक्व नहीं है तो उसे परिपक्व होने के लिए भी मार्गदर्शन करता रहता है। और गुरु परंपरा मे यही नियम है की जब्तक कोई शिष्य मानसिक, शारीरिक बौद्धिक रूप से परिपक्व न हो तबतक उसे किसी गुप्त विषय के बारे मे बताया नहीं जाता। अगर वो परिपक्व नहीं है पर फिर भी उसके भाग्य मे लिखा है तो पुरुषार्थ करने हेतु उसको योग्य मार्गदर्शन किया जाता है। मेरे पास ३५००+ से अधिक लोग रहस्य जानने के हेतु से आए पर पुरुषार्थ करने की तयारी केवल १४ लोगों ने दिखाई और पुरुषार्थ करके वो परिपक्वता प्राप्त भी की! जो पुरुषार्थ और कर्म करने की तयारी दिखाए उसे ये विश्व मार्गदर्शन करने सज्ज हो जाता है जो न दिखाए उनके पिछवाड़े पर लाथ भी देना गुरु परंपरा को आता है।

लाथ तो मारनी ही पड़ती है क्यों की स्वार्थी गधे को मार मारकर घोडा बनाना और उसको मेकप करके सजाकर रेस मे दौड़ाना मुझे नहीं आता, जो पैदाइशी घोडा है उसको ही मैं तयार करता हु और दाव लगाता हु! मुझे भी मेरी गुरु परंपरा को जवाब देना होता है, क्योंकी मेरे गुरुओ ने मुझे गधोका मेकअप नहीं शेर और बाज बनाना सिखाया है!

एक बात समझ कर गांठ बांध लो जीवन मे जो कुछ भी हो चुका है, वर्तमान मे हो रहा है, या भविष्य मे होगा वो नियत समय पर ही होगा जल्दबाजी आपको है, समयचक्र को नहीं। भ्रूण ९ माह पूर्ण होने के बाद ही जन्म लेगा फिर चाहे वो स्वयं भगवान का अवतार ही क्यों न हो। जब वो पूर्ण रूप से यौवन प्राप्त करेगा तभी किसीके जन्म का कारण या पिता बनेगा उससे पूर्व नहीं। 

वैसे ही अध्यात्म मे कुछ बाते तभी जानना और समझना उचित है जब सही समय आएगा जल्दबाजी करोगे तो नुकसान तुम्हारा ही होगा। जरूरत से ज्यादा जान लोगे तो भी नुकसान तुम्हारा ही होगा। अगर कुछ बाते आपको पता नहीं है इसका अर्थ ये है या तो वो आपके काम की नहीं है या फिर आप उसको समझने लायक नहीं हो इसलिए इस विश्व को संचालित करने वाली शक्ति ने उस रहस्य से आपको अनभिज्ञ रखा है। 

अब कुछ लोग बोलेंगे आपने भी तो इस ग्रुप का नाम रहस्यमई गूढ सनातन मंत्र साधना रखा है आप भी तो उन्ही लोगों मे हो जो गूढ, रहस्य ऐसे शब्द जोड़ कर लोगों से छल करते है। 

तो उनके लिए सौ बातों की एक बात - कलयुग मे छल का आशय यदि धर्म है तो छल भी धर्म है। मेरा आशय लोगों को अध्यात्म के प्रति जागृत करना है ना की भ्रमित करना इसलिए ये छल तो मैं करूंगा ही और यही शिवांश जमदग्नि का स्टाइल है। 


क्रमश: 

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कली और कलयुग - 2

(भाग दो - शिक्षा का प्राथमिक चरण)

जब कोई डॉक्टर बनने के लिए जाता है तो सबसे पहले उसे मानवी शरीर के सभी अंगों को क्या कहते है? वो कैसे निर्मित होते है? उनका कार्य क्या है? ये सब समझाया जाता है। जब कोई इंजीनियरिंग करने जाता है तो उसे यंत्रों के हर एक भाग का निर्माण, कार्य तथा आवश्यकता का ज्ञान दिया जाता है।

अगर डॉक्टर को किसी विशेष अंग का या बीमारी का स्पेशलिस्ट भी बनना हो तो उसे शुरुआती प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है जो एक डॉक्टर बनने के लिए आवश्यक है जैसे कि बायोलॉजी, एनाटॉमी का प्राथमिक ज्ञान लेना ही पड़ता है। इंजीनियरिंग में भी किसी विशेष क्षेत्र में अभियांत्रिक बनने के लिए भी हर इंजीनियर को फिजिक्स, मैथमेटिक, केमिस्ट्री का प्राथमिक ज्ञान पहले दिया ही जाता है उसके बाद ही वो अपना ऐच्छिक क्षेत्र चुन सकता है।

हर ज्ञान को पूर्ण रूप से प्राप्त करने हेतु प्राथमिक चरण पूर्ण किए बिना कोई भी अगले चरण तक पहुंच नहीं सकता। अबकड़ सीखे बिना कोई भी वाचन लेखन सिख नहीं सकता। इसका अर्थ ये कि डॉक्टर और इंजीनियरिंग का ज्ञान लेने के प्राथमिक चरण पहले से निर्धारित है। 

उसी प्रकार अध्यात्म में प्रवेश करने हेतु, ध्यान योग तंत्र मंत्र उपासना साधना के भी कुछ प्राथमिक चरण होते ही है। वो पूर्ण किए बिना आप कितने भी गुरु बना ले, मंत्र जप कर ले, स्तोत्र पढ़ ले, घंटों तक ध्यान कर ले या शरीर को योग के माध्यम से पिचका ले आप कभी भी कही भी पहुंच नहीं सकते। क्यों कि कोई भी ज्ञान लेने से पूर्व उसकी नींव का मजबूत होना आवश्यक है। तो जब आपको कोई भी ऐरा गैरा आके बोल दे कि मैं तुझे तंत्र सिखा दूंगा, मंत्र सिखा दूंगा योग सिखा दूंगा या ध्यान सिखा दूंगा तो आप विश्वास कैसे कर सकते है? अगर इतना ही आसान है सबकुछ सीखना या सिखाना तो इस विश्व में इतना असंतोष क्यों है? सभी डॉक्टर क्यों नहीं है, सभी इंजीनियर क्यों नहीं है? सभी ध्यानी, योगी, मांत्रिक, यांत्रिक, तांत्रिक क्यों नहीं है? 

जैसे हर कोई डॉक्टर नहीं बन सकता, हर कोई इंजिनियर नहीं बन सकता, हर कोई कलाकार या लेखक नहीं बन सकता, उसी प्रकार तंत्र मंत्र यंत्र जैसा पारलौकिक विज्ञान सबके लिए नहीं है कुछ विशेष आत्माओं को ही यह सीखने की मेधा (IQ) कहो या merit प्राप्त होता है। 

जैसे UPSC MPSC IIT में हर कोई पास नहीं हो सकता पर लोग जिद पकड़ लेते है कि मुझे तो सरकारी नौकरी चाहिए ही और अपना सबकुछ दाव पर लगाकर अपना जीवन उसमें झोंक देते है। ऐसा कोई ढूंढते है जो उसे उसकी इच्छा पूर्ण करने का अवसर दे। क्लासेज join करते है। ताकि अच्छे मार्क्स लाकर IIT, डॉक्टर या इंजीनियर बन सके...यही सब अध्यात्म के क्षेत्र में भी हो रहा है। कुछ लोग जिद पर अड़ गए है कि वो कोई सिद्धि प्राप्त कर लेंगे या अपने इष्ट का दर्शन कर लेंगे या फिर कृपा प्राप्त कर लेंगे और ऐसे लोगों की जिद देखकर अंधश्रद्धा फैलाने वाले पाखंडियों का धंधा चल पड़ा है। 

आपने देखा होगा कितने लोग है जो डॉक्टर इंजीनियर UPSC MPSC IIT जैसे ऊंचे पद को प्राप्त करने की मनीषा रखते है पर हर कोई नहीं बन पाता। और जो नहीं बन पाते वो या तो अपने क्लासेज खोल लेते है, या फिर IIT, ग्रेजुएट, MBA चायवाला बन जाते है और वो बनने का आडंबर करते है जो वो कभी बन नहीं पाए...! 

मैं किसीको निराश करने के लिए ये नहीं लिख रहा मैं केवल उन लोगों को सचेत कर रहा हु जो आध्यात्मिक विषयों से जुड़े क्लासेस ज्वाइन करके, गुरु दीक्षा लेकर, मंत्र जाप करके, या दिन रात तंत्र मंत्र की किताबें पढ़के या यूट्यूब की वीडियो देखने ये सोच लेते है कि वो अध्यात्म को, तंत्र,मंत्र और पारलौकिक विज्ञान को आत्मसात कर लेंगे तो आप ठीक उन लोगों में से हो जो स्पर्धा परीक्षाओं में किताबें रट रट के उत्तीर्ण होने के सपने देख रहे है। 

और यही सत्य है...चाहे मानो या न मानो...मेरा काम तो बस सच बोलना है अगर किसी सज्जन को मेरी बात का बुरा लगा है तो किसी शुभ मुहूर्त पर पीतल की कटोरी में पानी ले और उसमें डूब मरे...! 

क्रमश:


शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कली और कलियुग - 1

मैं जानता हु कि ये लेख इक्कादुक्का लोग ही पढ़ेंगे। मेरे लेख सभी पढ़े इसकी अपेक्षा मैं भी रखता नहीं हूं। क्यों कि सभी पढ़ भी लेंगे तो उनमे से ५०% लोगो को कुछ पल्ले पड़ना नहीं है क्यों कि मैं न स्वयं के स्वार्थ की बात करता हु न मेरे लेख पढ़ने वालों की! इसलिए पहले ही सूचित कर देता हूं लेख लंबा है और आपके फायदे की कोई भी बात मैने इसमें नहीं लिखी है। तो अपना समय व्यर्थ न करते हुए यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर जाए और रील देख कर अपना ज्ञान? बढ़ाए!

श्रीहरि विष्णु के अवतार भगवान श्री राम ने मर्यादाओं का पालन करके मर्यादापुरुषोत्तम कहलाए, उन्हीं श्रीहरि ने कृष्ण का अवतार लेकर छल और कपट का प्रयोग कर अधर्म को हराया और छलिया तथा रणछोड़ भी कहलाए। दोनों युगों में क्या अंतर था? भगवान को भी युगों की आवश्यकता के अनुसार बदलना पड़ता है ये संसार को दर्शाना था। त्रेता और द्वापर युग में भी लोग भगवान को पहचान नहीं पाए थे तो क्या कलयुग में पहचानेंगे? त्रेता द्वापर युग में atleast लोगों को अध्यात्म का ज्ञान तो था पर कलयुग में अध्यात्म का सही अर्थ ही किसीको ज्ञात नहीं है।

कलयुग में कली इतनी माया फैलाएगा कि कल्कि और कली में भेद करना मुश्किल हो जाएगा। और सबसे बड़ी सेना कल्कि के विरुद्ध खड़ी होगी। क्योंकि सब मोह माया स्वार्थ और वासना से घिरकर अधर्म का साथ देंगे और इस माया में रहेंगे कि यही धर्म है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार भीष्म, कर्ण, विकर्ण, गुरु द्रोण ये समझते रहे कि जिस मार्ग पर वो चल रहे है वही धर्म है। इसीलिए ९८% से ज्यादा मनुष्यों का अंत कल्कि के हाथों होगा। 

लोगों का अध्यात्म से दूर होने का कारण -
अध्यात्म को व्रत उपासना शाकाहार ब्रह्मचर्य तक सीमित कर दिया गया है।
कुछ पाखंडियों ने उनके स्वार्थ की पूर्ति हेतु मंत्र ध्यान योग तंत्र इनके अलग अलग नाम देकर इन सबको अलग अलग दिखाया गया। देवी देवताओं के नाम से डराकर लोगो को समाधानी सरल जीवन व्यापन छोड़ मोह और लालच में बांधा गया। मनुष्यों का संयम कम होना। सबकुछ जल्दबाजी में चाहिए। सीखना है तुरंत १ दिन १ घंटे १० मिनट या फिर ३० सेकंड के वीडियो में भी सिखादो चलेगा क्यों कि मनुष्यों के पास समय की कमी है। क्यों कि समय बचाकर अधिक से अधिक वीडियो देख पाए और अपनी जानकारी की भूख मिटा पाए। इसलिए बहुत सारी जानकारी सबने इकट्ठा कर ली है और इस गलतफहमी में है कि उन्हें ज्ञान है। पूजा पाठ करने वालों का मजाक उड़ाया जा रहा, अगर बच्चा पूर्व जन्मों के संस्कारों से जुड़कर भगवान की पूजा अर्चना करने लग भी जाए तो माता पिता उसे उस मार्ग से ये सोचकर हटा रहे है कि कही ये बच्चा साधु सन्यासी न बन जाए। अध्यात्म की राह पर चलने वालों को ठगा जा रहा है गलत मार्गदर्शन करके उनसे मलिन विद्याओं तथा प्रेत एवं भूतों की पूजा करवाई जा रही है।

और सबसे बड़ी बात जो अध्यात्म खत्म हो रहा है उसका कारण है स्वार्थ और लालच। स्कूल में ही मनुष्य को सिखाया जाता है कि वही करो जिससे तुम्हारे स्वार्थ की पूर्ति हो। मनुष्य वही ज्ञान लेना चाहता है जिससे उसकी कमाई हो सके या स्वार्थ पूरा हो सके। ये विचारधारा स्कूलों में सिखाई जाती है जिसमें ये बताया जाता है कि ये करोगे तो इतने मार्क्स आएंगे और आगे जाकर तुम्हारी तनख्वा(सैलरी) इतनी होगी। अगर ज्यादा कमाना है तो ज्यादा पढ़ाई(जानकारी) करना अनिवार्य दिखाया गया। चाहे बुद्धि हो या न हो ज्ञान हो या न हो, उस विषय में रुचि, परिपक्वता हो या न हो...ज्यादा मार्क्स आए मतलब कमाई पक्की। 

अध्यात्म को भी ऐसे ही देखा जाने लगा है अध्यात्म से जुड़ा कोई भी विषय हो उसके क्लासेस शुरू हो गए है। लोग सिख रहे है और तुरंत अपने क्लासेज शुरू करके और लोगों को सिखा रहे है चाहे स्वयं को कुछ आए या ना आए सर्टिफिकेट मिल गया इसका अर्थ आप सिख गए हो...

क्या सच में अध्यात्म को १ दिन १ सप्ताह १ महीना या १ वर्ष की कालावधी में किसी क्लास के माध्यम से सिखा जा सकता है? उदाहरण के तौर पर योग और ध्यान से जुड़े क्लासेज की बात करे तो जेन योग ब्रह्म योग फलाना ध्यान ढिमका ध्यान करके इतना मार्केट में तहलका मचा है। तंत्र की बात करो तो वशीकरण मारन और ब्रह्म विद्या, ब्रह्मास्त्र विद्या, दशमहाविद्याओं, श्रीविद्या के नीचे तो कोई बात ही नहीं करता। ३ दिन में मंत्र और तंत्र का डिप्लोमा, डॉक्टरेट मिल रहा है। 

This is the age of information (IT), not wisdom. 
ग्रन्थ, पुस्तके, यूट्यूब वीडियो, ऑनलाइन क्लास ये सब करके आपको जानकारी तो मिलेगी पर ज्ञान नहीं, और यदि ज्ञान चाहिए तो संयम आवश्यक है। अपनी अंतरआत्मा से अवश्य पूछना...आपके पास ज्ञान है या केवल जानकारी?..क्या आपके पास अध्यात्म का ज्ञान अर्जित करने हेतु पर्याप्त संयम है? स्वयं विचार करे!

क्रमशः-  

शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

कलयुग की शुरुवात

कोई सच सुनना नहीं चाहता इसलिए कोई बोलता नहीं सच बोलने वाले को चुप कराया जाता है, सबको तुरंत चमत्कार चाहिए इसलिए तप किसीको नहीं चाहिए इसलिए ढ...