मैं जानता हु कि ये लेख इक्कादुक्का लोग ही पढ़ेंगे। मेरे लेख सभी पढ़े इसकी अपेक्षा मैं भी रखता नहीं हूं। क्यों कि सभी पढ़ भी लेंगे तो उनमे से ५०% लोगो को कुछ पल्ले पड़ना नहीं है क्यों कि मैं न स्वयं के स्वार्थ की बात करता हु न मेरे लेख पढ़ने वालों की! इसलिए पहले ही सूचित कर देता हूं लेख लंबा है और आपके फायदे की कोई भी बात मैने इसमें नहीं लिखी है। तो अपना समय व्यर्थ न करते हुए यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर जाए और रील देख कर अपना ज्ञान? बढ़ाए!
श्रीहरि विष्णु के अवतार भगवान श्री राम ने मर्यादाओं का पालन करके मर्यादापुरुषोत्तम कहलाए, उन्हीं श्रीहरि ने कृष्ण का अवतार लेकर छल और कपट का प्रयोग कर अधर्म को हराया और छलिया तथा रणछोड़ भी कहलाए। दोनों युगों में क्या अंतर था? भगवान को भी युगों की आवश्यकता के अनुसार बदलना पड़ता है ये संसार को दर्शाना था। त्रेता और द्वापर युग में भी लोग भगवान को पहचान नहीं पाए थे तो क्या कलयुग में पहचानेंगे? त्रेता द्वापर युग में atleast लोगों को अध्यात्म का ज्ञान तो था पर कलयुग में अध्यात्म का सही अर्थ ही किसीको ज्ञात नहीं है।
कलयुग में कली इतनी माया फैलाएगा कि कल्कि और कली में भेद करना मुश्किल हो जाएगा। और सबसे बड़ी सेना कल्कि के विरुद्ध खड़ी होगी। क्योंकि सब मोह माया स्वार्थ और वासना से घिरकर अधर्म का साथ देंगे और इस माया में रहेंगे कि यही धर्म है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार भीष्म, कर्ण, विकर्ण, गुरु द्रोण ये समझते रहे कि जिस मार्ग पर वो चल रहे है वही धर्म है। इसीलिए ९८% से ज्यादा मनुष्यों का अंत कल्कि के हाथों होगा।
लोगों का अध्यात्म से दूर होने का कारण -
अध्यात्म को व्रत उपासना शाकाहार ब्रह्मचर्य तक सीमित कर दिया गया है।
कुछ पाखंडियों ने उनके स्वार्थ की पूर्ति हेतु मंत्र ध्यान योग तंत्र इनके अलग अलग नाम देकर इन सबको अलग अलग दिखाया गया। देवी देवताओं के नाम से डराकर लोगो को समाधानी सरल जीवन व्यापन छोड़ मोह और लालच में बांधा गया। मनुष्यों का संयम कम होना। सबकुछ जल्दबाजी में चाहिए। सीखना है तुरंत १ दिन १ घंटे १० मिनट या फिर ३० सेकंड के वीडियो में भी सिखादो चलेगा क्यों कि मनुष्यों के पास समय की कमी है। क्यों कि समय बचाकर अधिक से अधिक वीडियो देख पाए और अपनी जानकारी की भूख मिटा पाए। इसलिए बहुत सारी जानकारी सबने इकट्ठा कर ली है और इस गलतफहमी में है कि उन्हें ज्ञान है। पूजा पाठ करने वालों का मजाक उड़ाया जा रहा, अगर बच्चा पूर्व जन्मों के संस्कारों से जुड़कर भगवान की पूजा अर्चना करने लग भी जाए तो माता पिता उसे उस मार्ग से ये सोचकर हटा रहे है कि कही ये बच्चा साधु सन्यासी न बन जाए। अध्यात्म की राह पर चलने वालों को ठगा जा रहा है गलत मार्गदर्शन करके उनसे मलिन विद्याओं तथा प्रेत एवं भूतों की पूजा करवाई जा रही है।
और सबसे बड़ी बात जो अध्यात्म खत्म हो रहा है उसका कारण है स्वार्थ और लालच। स्कूल में ही मनुष्य को सिखाया जाता है कि वही करो जिससे तुम्हारे स्वार्थ की पूर्ति हो। मनुष्य वही ज्ञान लेना चाहता है जिससे उसकी कमाई हो सके या स्वार्थ पूरा हो सके। ये विचारधारा स्कूलों में सिखाई जाती है जिसमें ये बताया जाता है कि ये करोगे तो इतने मार्क्स आएंगे और आगे जाकर तुम्हारी तनख्वा(सैलरी) इतनी होगी। अगर ज्यादा कमाना है तो ज्यादा पढ़ाई(जानकारी) करना अनिवार्य दिखाया गया। चाहे बुद्धि हो या न हो ज्ञान हो या न हो, उस विषय में रुचि, परिपक्वता हो या न हो...ज्यादा मार्क्स आए मतलब कमाई पक्की।
अध्यात्म को भी ऐसे ही देखा जाने लगा है अध्यात्म से जुड़ा कोई भी विषय हो उसके क्लासेस शुरू हो गए है। लोग सिख रहे है और तुरंत अपने क्लासेज शुरू करके और लोगों को सिखा रहे है चाहे स्वयं को कुछ आए या ना आए सर्टिफिकेट मिल गया इसका अर्थ आप सिख गए हो...
क्या सच में अध्यात्म को १ दिन १ सप्ताह १ महीना या १ वर्ष की कालावधी में किसी क्लास के माध्यम से सिखा जा सकता है? उदाहरण के तौर पर योग और ध्यान से जुड़े क्लासेज की बात करे तो जेन योग ब्रह्म योग फलाना ध्यान ढिमका ध्यान करके इतना मार्केट में तहलका मचा है। तंत्र की बात करो तो वशीकरण मारन और ब्रह्म विद्या, ब्रह्मास्त्र विद्या, दशमहाविद्याओं, श्रीविद्या के नीचे तो कोई बात ही नहीं करता। ३ दिन में मंत्र और तंत्र का डिप्लोमा, डॉक्टरेट मिल रहा है।
This is the age of information (IT), not wisdom.
ग्रन्थ, पुस्तके, यूट्यूब वीडियो, ऑनलाइन क्लास ये सब करके आपको जानकारी तो मिलेगी पर ज्ञान नहीं, और यदि ज्ञान चाहिए तो संयम आवश्यक है। अपनी अंतरआत्मा से अवश्य पूछना...आपके पास ज्ञान है या केवल जानकारी?..क्या आपके पास अध्यात्म का ज्ञान अर्जित करने हेतु पर्याप्त संयम है? स्वयं विचार करे!
क्रमशः-
शिवांश (हर्यक्ष) जमदग्नि

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